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लोकनाट्य परम्परा में नौटंकी

डॉ. लखन लाल खरे

प्रकाशक : आराधना ब्रदर्स प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16169
आईएसबीएन :9788194893394

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लोकनाट्य परम्परा में नौटंकी

लोकनाट्य परम्परा में नौटंकी

भारत में नाट्य और लोकनाट्यों की अविच्छिन्न परंपरा रही है। कालांतर में नाटकों को शास्त्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया गया। शेष जो आबद्ध न हो सका, वह लोकनाट्य के रूप में उपस्थित हो गया। नाटक ने शास्त्रीय नियमों के तटों से आबद्ध होकर सागर और सरोवर को अपना रंगमंच बनाया तो लोकनाट्य निर्झर और निर्झरिणी की भाँति स्वच्छंद गति से विचरण करता रहा - उन्मुक्त। कंकरीले - पथरीले कंटकाकीर्ण मार्गों पर बिखरने वाली इसकी श्रम - शमन - शक्ति के रहस्य को जानने-समझने की उत्कंठा ने साहित्य – सर्जकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। लोक नाट्यों को भी समादृत किया जाने लगा। इन्हीं लोकनाट्यों में नौटंकी एक ऐसी सशक्त विधा रही है, जिसने लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक लोक के मानस पर राज किया है। इतना ही नहीं, समाज सुधार और राष्ट्रीय चेतना के संवर्द्धन में भी नौटंकी ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है।

डॉ. लखन लाल खरे ने इसी नौटंकी लोकनाट्य के विविध पक्षों को जानने - समझने का प्रयास अपनी इस शोधपरक कृति में किया है। डॉ. खरे की सूक्ष्म, सटीक और

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    अनुक्रम

  1. समर्पण
  2. अनुक्रमणिका

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